माई...!! हम भुखे रहती... त जीयत रहती...
सरकारी खाना खा के मर
गईनी....
हम तोहार दुध के कर्ज ना
चुका पईनी... !!
गईल रहनी पढ़े... ढ़ाई
आखर प्रेम के...
लील गईल हमरा के...
जहर इ तेल के...
छुटल तोहर अंचरा
के साथ... बाबु के हाथ...
जिनगी के लडाई हम
हार गईनी...
हम तोहार दुध के
कर्ज ना चुका पईनी... !!
मरलो
पर चैन नईखे... देख राजनीति के खेल...
तीर करेजा चीर देहलक... कमल
भी हो गईल फ़ेल...
अब लालटेनो इ तेल में जर ना
पाई...
एकरो हाथ के साथ छूट जाई..
तोहरो दूध इ जालिमन के माफ़ ना
करी...
अब त उपरे वाल इंसाफ़ करी.....
हम ले के आयेम दोसर जनम...
करब सब के किस्सा खतम... इ खा के
कसम
हम सरकारी खाना ना खाईब...
तबे तोहार दूध के कर्ज चुका पाईब... !