हरदिन... हरपल सोच रहा ... मैं मन किस ओर जाऊं...
रूपहली सुबह की धूप सेकुं... या शहर यौवन को ललचाऊं...
शावर के सुनहरे संगम से खेलूं... या मचलती नदि में नहाऊं...
खेतों की हरियाली में नाचुं... या पंख हवा में फ़हराऊं...
कोयल की कूक सुनु मैं... या खुद मधूर गीत गाऊं...
खुद के सुख में सुख पाऊं.... या देश गौरव में मिट जाऊं....
हरदिन.... हरपल सोच रहा... मैं मन किस ओर जाऊं...
रूपहली सुबह की धूप सेकुं... या शहर यौवन को ललचाऊं...
शावर के सुनहरे संगम से खेलूं... या मचलती नदि में नहाऊं...
खेतों की हरियाली में नाचुं... या पंख हवा में फ़हराऊं...
कोयल की कूक सुनु मैं... या खुद मधूर गीत गाऊं...
खुद के सुख में सुख पाऊं.... या देश गौरव में मिट जाऊं....
हरदिन.... हरपल सोच रहा... मैं मन किस ओर जाऊं...
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