Wednesday 27 June 2012

आओ... Gangs of वासेपुर को गाली देते हैं....!


Gangs of  वासेपुर ....   क्या फ़िल्म है भाई...  देख के मन गदगद हो गया... !!  देख तो मैंने पहले दिन ही लिया था... अभी तक तीन बार देख चुका हूं... !  पर कुछ लोगों ने मन बना लिया है...  आओ... Gangs of  वासेपुर को गाली देते हैं....!   अनुराग कश्यप की फ़िल्म है... अच्छा...??  चलो फ़िर मिल के कुछ उल्टा - सीधा कहते हैं... !   कुछ तो जापान और चाईना में बैठे सिर्फ़ फ़िल्म का ट्रेलर देख के ही अपनी भड़ास निकाल रहे हैं...  और जहां हम पाईरेटेड सी.डी. के विरोध में लड़ रहे हैं... वह उसी का इंतज़ार कर रहे हैं... !  कोई वासेपुर का है तो उसको अपने स्थान और मजहब के कारण समस्या है... ! कोई अपने निजी संबंधो को जोड़ समीक्षा कर रहा है... !  मैं एक नवसिखिया लेखक हुं...  पर रहा न गया इसलिए यह लिख रहा हुं... !  हां एक बात कहना चाहता हुं...  जिसको सिनेमा समझ में ना आती हो... चाहे जिसको अनुराग कश्यप से निजी समस्या हो...  यह उसके लिए नहीं है... !!     
क्या नहीं है इस सिनेमा में....  मनोरंजन... संगीत... विषय... जानकारी.... सेक्स... व्यंग... सरलता.... शानदार अभिनय... कमाल का कैमरा वर्क... और ज़ोरदार निर्देशन.... ! कौन सा ऐसा पहलु है जो आपको याद न रह जाता हो... !  शुरूआत में “क्योंकि सास भी कभी बहु थी” से शानदार शुरूआत... जिसमें सबको वासेपुर में आमंत्रण देती सिरियल की नायिका... और आनेवालों का गोलियों के बौछार से स्वागत... !!   मोबाईल रिंग टोन “ मैं हुं खलनायक” से  तत्काल न दिखने वाले फ़ैजल खान के चरित्र का परिचय... और अगले ही दृश्य में नेता का दोहरा चरित्र... जो अपने ही साथी सुल्तान के लिए पुलिस का घेरा लगा चुका है.... !!
अनाज को लूट सस्ते दाम में बेचकर गरीबों का भला करने वाला शाहिद खान के गैंग का सफ़ाया... और फ़िर... “एक बगल में चांद होगा एक बगल में रोटियां” ....!   कोयले में सना शाहिद खान और उसके मुंह से टपकता खून... और स्लो मोशन में फ़िल्माया गया यह दृश्य...  उफ़...!!  उस वक्त की काली दुनिया का लाल सच कह रहा है...!     बचपन से सर मुडाये सरदार खान का सहजता से सवारियों को आवाज लगाना...  और बिना सोचे बीबी को प्रेग्नेन्ट कर बच्चों की लाईन लगा देना... उस समय के भारत देश की बढ़ती आबादी के तरफ़ इशारा करती है... ! माफ़ियाओं के बदलते परिदृश्य... और पीढ़ी दर पीढ़ी बदलता उनका व्यवसाय....  पहले अनाज की लूट... फ़िर कोयला... फ़िर फ़ैक्ट्रियों से बुरादे और उनके कबाड़.... फ़िर बालु की चोरी... और तलाबों पर कब्जा... क्या नहीं दिखाया गया इसमें... !!   
जिस पेट्रोल पंप को लूट कर सरदार खान ने अपराध की शुरूआत की...  जहां से भागते समय उसने अपना चप्पल तक नहीं छोडा...  वहीं पेट्रोल भराते समय... इस दुनिया को छोड अलविदा हो गया...!    अभिनय में हर किरदार ने असर छोड़ा है.... सरेआम चाकु से गोद कर किसी की हत्या कर देने वाले सरदार खान के बेटे को जब गोली लगती है तो उसकी बेचैनी देखते बनती है... ! बदन पर सिर्फ़ तौलिया लपेटे... धान पिटती औरतों के बगल से मनोज बाजपयी का गुजरना हो या मुंह में दातुन लिये... लूंगी और गंजी पहने कन्धे पर तौलिया रक्खे बंगालन का बोझ उठाने को तैयार सरदार खान... जो उसके जाते ही.... सुनो.....!!  कहकर जिस तरह से मुस्कुराता है... लगता है सिनेमा में नहीं... कुछ सामने घट गया... !!  खाना खाते समय बंगालन को निहारता सरदार जब लड़की कि शिकायत सुनता है तो उसपर जो गुजरता है वह मनोज बाजपयी ही तराश सकते थे... ऐसा कहुं तो गलत ना होगा... !!  
बिना परमिशन के फ़ैजल जब अपनी प्रेमिका का हाथ छूता है... और उसकी डांट सुनता है ... और तभी एक बकरी पीछे कनईल के फ़ूल के पत्तो को खाने आ जाती है... इतना वास्तविक लगता है... कि बड़े – बड़े पार्क और लाखों खर्च कर सुन्दर विदेशी स्थल पर गाने के लिए नाचते हीरो – हिरोईन फ़ीके पड़ जाते हैं.. !  पहली बार बनारस में पिस्टल मिलने के बाद आईने के सामने अमिताभ बन झुठी फ़ायर करता फ़ैजल कब सच में यादव का सीना छलनी कर देता है पता ही नहीं चलता... !  सरदार खान के बाप को जिस यादव ने अपनी गोली का शिकार बनाया... सरदार खान के बेटे ने उसे अपनी गोली से उडा दिया...! न जानते हुए भी फ़ैजल खान अपने दादा के खुन का बदला ले लेता है... और दर्शक के मन को शांति मिल जाती है...!  नवाज़ ने हर जगह कमाल किया है... ! 
जहां कबुतर भी एक पंख से उडता है और दुसरे से अपना इज्जत बचाता है... जहां सुल्तान के डर से पुलिस सबुत में मिली अंगुली भी छोड़ चली जाती है... वहां सरदार खान बम के धमाको से पूरे कसाई कस्बे को उड़ा देता है... !   पंकज त्रिपाठी ने हर दृश्य में सहज दिखे हैं... चाहे वह चप्पल निकालकर पिटाई करने वाला सीन हो या... अपने मामा को लहंगा पहनकर नाचने के लिए कहने वाला दृश्य.. !  और वहां तो मजा आ जाता है जब सुल्तान रामाधीर सिंह के घर पहुंचता है और मुसलमान को खाने के लिए चिनी – मिट्टी के बर्तन की बात होती है... हम झट से कुछ पल के लिए बचपन में चले जाते हैं जब अनवर चाचा घर आते थे और उन्हे बाहर रखे बर्तन में ही खाना दिया जाता था... ! और फ़िर  सुल्तान जब  औटोमेटिक गन की मांग करता हैं...   किसी के खांसने की आवाज के बाद लगा सिनेमा देख रहा हूं... !   
रामाधीर सिंह बने निर्देशक तिगमांशु जी अपनी फ़िल्मों के बाद  अभिनय में अपनी धाक जमा जाते हैं... ! विधायक बेटे को पीटने वाला दृश्य और उसमें अपनी पत्नी को कोसता रामाधीर.. “ तुम्ही जनी हो इस नालायक को” जैसे उसने अकेले बच्चा पैदा किया हो... !  लेखक पुरूष मानसिकता को उजागर कर जाता है... !  रामाधीर और कुरैशी के बीच की वार्ता और बच्चे के अवशेष लाने की बात... और असहज दिखता कुरैशी का सहज अभिनय करते विपीन शर्मा ने कमाल कर दिया है... !
इतना कुछ लिखने के बाद लोगों को शायद यह न लगे की मैं सिर्फ़ तारीफ़ का पूल बांध रहा हूं... पूरी फ़िल्म में कुछ खटकता है तो वह रामधारी सिंह का बेटा... जो शायद सहज अभिनय के बजाय...  स्कुली एक्टींग करता दिखता है...  गाने जितना प्रभावित एलबम में करते हैं शायद फ़िल्म में नहीं कर पाते... !  हां... वुमनिया और बिहार के लाला जरूर कमाल है... !  पर अनुराग भगवान तो नहीं कि उनसे गलती ना हो... !  इतने सारी अच्छाईयों में ये गलती छुप जाती है...!
राजीव रवि ने कैमरा भी कमाल किया है... उन्होने हर सीन को सहज बना दिया है... जहां तक मैं तकनीक समझता हुं... और फ़िल्म को दिमाग में दैड़ाता हुं तो यह दिखता है शायद क्रेन , जिम्मीज़िप कहीं लगाया ही नहीं गया है और उसकी कहीं जरूरत लगती भी नहीं है...! राजीव जी कमाल ...!!  
हां... एक बात सबसे खास है... लोक गीत और गायको की खोज जिस तरीके से अनुराग कश्यप ने की है वह कमाल है... !  जहां टी.वी. रियलिटी शो में रियलिटी से दूर... म्युजिक डायरेक्टरों के पिछलग्गु गायक की खोज हो रही है... वहां अनुराग ने सुजीत... दीपक सरीखे गायको को खोज निकाला है... ! अपने छोटे भाई संजीव के इस लाईन से मैं इतना प्रभावित हूं कि यहा लिख रहा हूं...  “ सुजीत शायद अपना गाया गाना सुन भावुक होकर कहीं एकांत में चला गया होगा  और ठीक इसी समय "सा रे गा मा पा" या "इन्डियन आईडल" का कोई चापलूस, भोंड़ा, बेसुरा, मोटा-तुंदियल, लम्बा-छरहरा, गोरा-चिट्टा जिमनास्ट टाइप 'सिंगर' (गायक या कलाकार नहीं, 'प्लेबैक सिंगर') मुंबई के किसी पब या कैफे में शराब का आखिरी पैग ख़त्म कर रहा होगा  और सुबह - सुबह किसी आइटम नंबर बनाने में लगे हुए म्यूजिक डायरेक्टर के तलवे चाटने पहुँच जायेगा....    ऐसा होता है...  एक तरफ नौशाद को मोहम्मद रफ़ी सड़क पर मिलते हैं या अनुराग कश्यप को सुजीत गया के किसी गाँव में मिल जाता है  वही दूसरी तरफ कुछ 'सिंगर्स' को म्यूजिक डायरेक्टर के तलवे चाटने उसके घर नियमित रूप से पहुंचना पड़ता है...”  अनुराग कश्यप शायद ऐसा इसलिए कर पाते हैं... क्योंकि उन्होंने निर्देशन बेच रहे किसी स्कुल से शिक्षा नहीं ली... और लोग उनका विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि अनुराग खुद में एक स्कुल होते जा रहे हैं... !     
लोग फ़िल्म की समीक्षा करते तो अच्छा लगता.... पर आज यहां समीक्षक कम उपेक्षक ज्यादा हो गये हैं... अनुराग कश्यप की फ़िल्म को लोग फ़िल्म की नजर से नहीं देख रहे... यह कोई इतिहास पर आधारित नहीं है... फ़िल्म के शुरूआत में ही लिखा गया है... कुछ पात्र काल्पनिक है... वह कुछ की संख्या कम है या ज्यादा नहीं कहा गया है... और कहानी वासेपुर की नहीं... वासेपुर के कुछ गैंग्स की है... फ़िर अच्छे और बुरे लोग कहां नहीं होते... यह उन बुरे लोगों की कहानी है...  और हां... यह सिनेमा है... डाक्युमेंन्ट्री नहीं....!  सच पर आधारित हो सकती है... सच नहीं... ! मैं समीक्षक नहीं हुं कि स्टार दूं... पर सिनेमा बहुत बेहतरीन नहीं तो बुरी भी नहीं है... !  फ़िल्म में इतनी खासियत तो है कि हम चर्चा कर रहे हैं.... उसके दृश्य जेहन में बस गये है... !   जहां पेड के नीचे नाच रहा स्टार हीरो.... सिक्स पैक बना अपने शरीर की नुमाईश करता मटन की दुकान लग रहा है... वहां लंगोट बाधे मनोज बाजपयी ज्यादा अच्छे लग रहे हैं... !  जहां अमीर इतने अमीर होते हैं कि उनके हेलिकाप्टर घर के सामने उतरता है... भले देश के वास्तविक अमीर टाटा , अंबानी के घर या छत पर हेलीपैड ना हो... वहां विधायक अपने एंबेस्डर कार में ही घुमता दिखता है... !  जहां एक अकेला पूरी दुश्मनो की पलटन उड़ा देता है वहां एक सरदार खान को छलनी करने के लिए छ: छ: लोग लगातार गोलिया चलाते हैं... ! और जिआ हो बिहार के लाला... कि उसके बाद जब वह कार से बाहर निकलता है... सारे लोग छुप के तमाशा देख रहे हैं... वह अकेले बढ़ने की कोशिश करता है... उस समय...  एक कम उम्र का लडका ही उसकी तरफ़ बढ़ने की कोशिश करता है...  क्योंकि शायद उस उम्र में डर नहीं होता... !!  
मैं फ़िल्म के बहाव में ऐसे बहने लगा हूं... कि लिखु तो और भी बहुत कुछ लिख सकता हुं... पर मेरे सिरियल “अफ़सर बिटिया”  के क्रियेटीव का फ़ोन आया है...  सर...  दो सीन लिख के भेज दिजीए...   इसलिए इसे यही छोड़ता हूं...  वक्त मिला तो और कुछ भी लिखुंगा... !! धन्यवाद....!!     

7 comments:

  1. amit ji, bilkul satik samikhcha ki he aapne...

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. Amit Sir, time na hone ki wajha se ye movie maine abhi tak nahi dekhi but aapne jo samikhcha ki hai, wo kabil-e-tarif hai. Ab to ye movie jarur dekhni padegi....!!
    bahut bahut dhanyawad Amit ji

    ReplyDelete
  4. i agree with ur comnts..sach me aaj kal samikshak,samikshak nahi upekshak ho gaye hai..

    ReplyDelete
  5. Chha gaye guru.....Bahut sahi comment hai...

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन लेख... ये सच है की आज यहां समीक्षक कम उपेक्षक ज्यादा हो गये हैं, और रही बात वासेपुर की तो, फिल्म हिट है और जिन्हें पसंद नहीं वो भी देख रहे है और उस पर बात कर रहे है, फिर वो बुरी हो या अच्छी... इससे ये तो साफ़ है अनुराग सफल रहे है अपने काम में, हर निर्देशक चाहता है की फिल्म रिलीज़ के बाद और पहले; ज्यादा से ज्यादा समय तक वह लोगो के दिमाग में बनी रही... और ऐसा हुआ भी है... अभिनय, छायांकन, निर्देशन सभी अव्वल दर्जे का है... अगर मुझे कहीं कमी लगती है तो वो है संकलन में, और वो शायद और बेहतर हो सकता था, पता नहीं मुझे ऐसा लगा, शायद और को न लगा हो और फिर मैं अभी इतना अनुभवी भी नहीं की ये मूल्यांकन कर सकूँ...

    अनुराग साब ने सभी से कहा... तेरी कह के लूंगा ... और सच में ले लिया .... हा हा हा ....

    ReplyDelete
  7. कई लोगों ने फिल्म देखकर कहा कि अरे यार इतनी गालियां..इतनी ज्यादा हिंसा..और उपर से मनोज वाजपेयी की ओवरएक्टिंग...उन लोगों की इतनी सारी आलोचनाओं पर मैंने कहा कि... बेटा फिर फिल्म देखना ही छोड़ दो... तुमलोगों के लिए तो सलमान खान और गोविंदा की बेमतलब की फिल्में ही सही है...गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट - 2 का बेसब्री से इंतज़ार है.. आपके लेख को पढ़ने के बाद बेसब्री और ज्यादा बढ़ गई है...आपकी लेखनी ने आग को और भड़का दिया है... शानदार... और आपके सीरियल्स का तो वाकई कायल हूं...ब्लॉग पर लिखते रहिए...अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा... और कभी-कभी हमारे ब्लॉग पर आना चाहें तो हमें अच्छा लगेगा..
    http://alokranjan1981.blogspot.com/

    ReplyDelete